4 June 2024 को जनस्ता में प्रकाशित लेख |
बढ़ता जल संकट न केवल पर्यावरण की दृष्टि से चिंता का विषय है, बल्कि यह देश के आर्थिक विकास में भी बाधक है। घटते जल स्रोत और पानी की बढ़ती मांग से मानव जीवन तथा आर्थिक विकास में अस्थिरता बढ़ रही है। इससे इंसानी जीवन और पशु पक्षियों का अस्तित्व भी संकट में आ गया है। बढ़ते जल संकट से अर्थव्यवस्था की रीढ़ कहे जाने वाले क्षेत्रों पर विशेष प्रभाव पड़ रहा है। इसका सामना सबसे ज्यादा कृषि उत्पादन, पर्यटन, पशुपालन, उद्योग, बागवानी, मत्स्य उद्योग, डेयरी उद्योग समेत अन्य क्षेत्रों पर पड़ रहा है। आज दुनिया की एक तिहाई आबादी के पास पीने के लिए स्वच्छ जल उपलब्ध नहीं है। संयुक्त राष्ट्र की ताजा रपट से पता चला है कि इस समय हर दूसरा व्यक्ति पानी की गंभीर समस्या से जूझ रहा है। दुनिया में लगभग 73.3 करोड़ लोग ऐसे क्षेत्रों में निवास करते हैं, जहां जल की समस्या बेहद गंभीर है। वैश्विक स्तर पर 2050 तक स्वच्छ जल की कुल मांग में 30 फीसद की बढ़ोतरी का अनुमान है।
विश्व बैंक ने अपनी एक रपट में बताया है कि स्वच्छ जल की कमी से हर वर्ष 260 अरब डालर का नुकसान होता है। विश्व की सबसे तेजी से बढ़ती भारतीय अर्थव्यवस्था में भी जल संकट अवरोधक है। यह नागरिकों के पेयजल के नैसर्गिक अधिकार को जोखिम में डाल रहा है, साथ ही देश के लाखों लोगों की जीविका का जोखिम पैदा कर रहा है। विभिन्न क्षेत्रों में नौकरियों को सीमित कर रहा है। वैश्विक स्तर पर कुल सृजित नौकरियों में चार में से तीन का आधार जल है। ऐसे में, बढ़ते जल संकट से नौकरियों पर बुरा प्रभाव पड़ेगा। देश में पहले से बेरोजगारी दर उच्च स्तर पर है, ऐसे में जल संकट से बेरोजगारी दर में बेतहाशा वृद्धि होगी।
उद्योगीकरण की ओर तेजी से बढ़ती भारतीय अर्थव्यवस्था और शहरीकरण की बढ़ती प्रवृत्ति से जल की मांग में तेजी से इजाफा हो रहा है। दूसरी ओर, जल की आपूर्ति बढ़ा पाने की संभावना बहुत सीमित है। भूजल स्तर लागतार घट रहा है। शहरों में जल संकट बढ़ने से वहां का आर्थिक विकास भी बाधित होता है। जल आधारित खाद्य पदार्थों के मूल्यों में वृद्धि होती है, जिससे महंगाई बढ़ती है। महंगाई बढ़ने से लोगों पर आर्थिक दबाव बढ़ता है, जिससे गरीबी, भुखमरी जैसी समस्याएं जन्म लेती हैं। शहरों और ग्रामीण क्षेत्रों में जल संकट के कारण स्वच्छ जल की उपलब्धता प्रभावित होती है और जलजनित बीमारियां तेजी से फैलती हैं। स्वच्छ जल की कमी से श्रमशक्ति की उत्पादकता पर प्रभाव पड़ता और स्वास्थ्य सेवाओं पर आर्थिक बोझ बढ़ता है। 'वर्ल्ड रिसोर्स इंस्टीट्यूट' की एक रपट ने दुनिया के गंभीर जल संकट का सामना करने वाले सत्रह देशों की सूची में भारत का भी जिक्र किया है। कई बड़े शहरों में जल संकट एक गंभीर चुनौती है। भारत का तीसरा सबसे ज्यादा जनसंख्या वाला शहर बंगलुरु इन दिनों गंभीर जल संकट का सामना कर रहा है। वहां 'डे जीरो' जैसे हालात देखने को मिल सकते हैं... पूरा लेख जनसत्ता के 4 जून 2024 अंक में पढ़ सकते हैं।
अजय प्रताप तिवारी (स्वतंत्र लेखक, चिंतक, पत्रकार)
यह लेख हिंदी दैनिक जनसत्ता में प्रकाशित हो चुका है।
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