वर्ष 2025 में विश्व एक गंभीर पर्यावरणीय संकट के दौर से गुजर रहा है। बदलते मौसम, अनियमित वर्षा, बढ़ते तापमान, और प्राकृतिक आपदाओं की आवृत्ति ने यह स्पष्ट कर दिया है कि प्रकृति अब असंतुलित हो चुकी है। यह संकट केवल वैज्ञानिक शोधों तक सीमित नहीं रह गया है, बल्कि आम जनमानस के जीवन को भी प्रभावित कर रहा है।


आज जब हम तकनीक और विकास के नए आयाम छू रहे हैं, तब यह आवश्यक है कि हम यह भी समझें कि यह विकास किस कीमत पर हो रहा है। औद्योगीकरण, अंधाधुंध शहरीकरण, वनों की कटाई, और जीवाश्म ईंधनों का अत्यधिक दोहन हमें उस दिशा में ले जा रहा है जहाँ पर्यावरणीय असंतुलन जीवन को असंभव बना सकता है।


पर्यावरणीय परिवर्तन के कुछ प्रमुख संकेत


वर्ष 2025 में वैश्विक तापमान में औसतन 1.5 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि दर्ज की गई है, जो संयुक्त राष्ट्र के पेरिस समझौते में तय की गई सीमा के करीब है। इस वृद्धि का असर केवल ध्रुवों की बर्फ के पिघलने तक सीमित नहीं, बल्कि इसके दुष्परिणाम अब हमारे शहरों और गाँवों में भी दिखने लगे हैं। असमय बारिश, सूखा, बाढ़, और तूफानों की तीव्रता पहले से कहीं अधिक हो चुकी है।


वायु प्रदूषण के कारण श्वसन संबंधी रोगों में बढ़ोतरी हुई है। विश्व के कई बड़े शहरों में वायु गुणवत्ता सूचकांक (AQI) खतरनाक स्तर तक पहुँच चुका है। जल संकट भी एक गंभीर चुनौती बन चुका है। भारत जैसे देश में कई महानगरों के जलस्रोत सूखने की कगार पर हैं, जिससे जनजीवन प्रभावित हो रहा है।


विकास बनाम पर्यावरण


विकास के नाम पर जो नीतियाँ अपनाई गईं, उन्होंने पर्यावरणीय क्षति को नज़रअंदाज़ किया। बड़ी-बड़ी परियोजनाओं के लिए वनों की कटाई की गई, जिससे जैव विविधता पर भी असर पड़ा। नदियाँ प्रदूषित हुईं, और भूजल स्तर में भारी गिरावट आई।


इसके साथ ही, उपभोक्तावादी संस्कृति ने प्राकृतिक संसाधनों पर भारी दबाव डाला। अधिक उत्पादन और उपभोग की इस दौड़ में यह भूल गए कि पृथ्वी की क्षमता सीमित है।


सकारात्मक पहलें


हालाँकि, इन चुनौतियों के बीच कुछ आशा की किरणें भी दिखाई दी हैं। वर्ष 2025 में कई देशों ने नवीकरणीय ऊर्जा जैसे सौर और पवन ऊर्जा को प्राथमिकता दी है। इलेक्ट्रिक वाहनों का उपयोग बढ़ रहा है, और प्लास्टिक के विकल्प खोजे जा रहे हैं।


भारत सरकार भी “मिशन लाइफ” (Lifestyle for Environment) जैसी योजनाओं के माध्यम से नागरिकों को पर्यावरण के प्रति जागरूक कर रही है। विभिन्न राज्यों में जल संरक्षण, वृक्षारोपण और स्वच्छता अभियानों को बढ़ावा दिया जा रहा है।


संयुक्त राष्ट्र और अन्य अंतर्राष्ट्रीय संगठनों द्वारा जलवायु परिवर्तन पर वैश्विक सहयोग को बढ़ावा देने की कोशिशें की जा रही हैं। COP सम्मेलनों में लिए गए निर्णयों को धरातल पर उतारने के प्रयास तेज हुए हैं।


हमारी जिम्मेदारी


बदलते पर्यावरण के इस दौर में केवल सरकारों या संस्थाओं की जिम्मेदारी नहीं है, बल्कि हर नागरिक की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण हो जाती है। हमें अपनी जीवनशैली में छोटे-छोटे बदलाव लाने होंगे, जैसे –


प्लास्टिक की जगह कपड़े या जूट के बैग का उपयोग


ऊर्जा की बचत के लिए बिजली का सीमित प्रयोग


वर्षा जल संचयन की व्यवस्था


पर्यावरण के अनुकूल यातायात जैसे साइकिल या सार्वजनिक परिवहन का उपयोग


हर साल कम से कम एक पौधा लगाना और उसकी देखभाल करना


स्कूलों और कॉलेजों में पर्यावरण शिक्षा को और अधिक व्यावहारिक बनाना चाहिए ताकि युवा पीढ़ी शुरू से ही प्रकृति के प्रति संवेदनशील हो। मीडिया और सोशल मीडिया का उपयोग करके भी पर्यावरण जागरूकता को जन-जन तक पहुँचाया जा सकता है।


निष्कर्ष


वर्ष 2025 हमें एक कठोर संदेश दे रहा है — अब भी यदि हमने पर्यावरण को प्राथमिकता नहीं दी, तो भविष्य की पीढ़ियों को इसका बड़ा खामियाजा भुगतना पड़ेगा। पर्यावरण संरक्षण अब कोई विकल्प नहीं, बल्कि अस्तित्व का प्रश्न बन चुका है। हमें यह समझना होगा कि आर्थिक प्रगति और पर्यावरण संरक्षण एक-दूसरे के विरोधी नहीं, बल्कि एक-दूसरे के पूरक हो सकते हैं, यदि नीतियाँ संतुलित और दूरदर्शिता से बनाई जाएँ।


इसलिए, आइए संकल्प लें कि हम न केवल विकास करेंगे, बल्कि ऐसे विकास की ओर बढ़ेंगे जो टिकाऊ हो, हरित हो और हमारी धरती को आने वाले कल के लिए सुरक्षित रखे।